कोई कुछ भी कहे, ज़रूरी नहीं कि सब उससे सहमत हों। और आज का वाद-आधारित या राजनैतिक दृष्टिकोण पर अवलम्बित सोच तो सुबह अपनी ही कही बात से शाम तक सहमत नहीं होने देता। यदि आप किसी विचारधारा या दलगत सोच की गिरफ्त में हैं, तब तो आप सही-गलत को ठीक से तौल ही नहीं पाएंगे।
लिखे-छपे शब्द "साहित्य" बन कर इंसान और इंसानियत के लिए काम करते हैं, लेकिन इन्हीं में कोई आपको साधू सा दिख सकता है, कोई शैतान सा। फिर लिखने वाले से भी आपका रिश्ता वैसा ही बनेगा।
फिरभी रुकिए मत, नई पीढ़ी को अपने सुझावों और मार्गदर्शन से ये समझाने की कोशिश ज़रूर कीजिये कि आप किसी को क्यों सराह रहे हैं, और किसी पर लानतें भेजने की वजह क्या है।
लिखे-छपे शब्द "साहित्य" बन कर इंसान और इंसानियत के लिए काम करते हैं, लेकिन इन्हीं में कोई आपको साधू सा दिख सकता है, कोई शैतान सा। फिर लिखने वाले से भी आपका रिश्ता वैसा ही बनेगा।
फिरभी रुकिए मत, नई पीढ़ी को अपने सुझावों और मार्गदर्शन से ये समझाने की कोशिश ज़रूर कीजिये कि आप किसी को क्यों सराह रहे हैं, और किसी पर लानतें भेजने की वजह क्या है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवजह ये इनमें पचास अर्जी फर्जी हैं ,वजह ये ऊपर वाले नीचे, नीचे वाले ऊपर हैं, वजह ये कि साहित्यकार चयन कर्ता में भी साहित्य की इतनी समझ और इतनी काबलियत नहीं होती कि टॉपर या बॉटम का स्थान तय कर सके ,न्याय कर सके, वजह ये कि ये जो टॉपर के साथ अर्जी -फर्जी फ्राड बॉटम चुने उनमें अनेक ऐसे जिन्हें खास साहित्यकारों की श्रेणी में गिनते भी नहीं हैं। वे खुद को टॉपर समझ रहे हैं जो इनकी जगह होने चाहियें ये उन्हें कमतर समझ रहे हैं , वजह ये कि इस तरह सुयोग्य और गम्भीर लेखकों को हतोत्साहित किया जा रहा है और जुगाड़ू बेकार फ्राड लोग उनके सिर पर रखे जा रहे हैं।सबका स्थान खुद तय है या होगा ,वजह ये कि इसका अपना मकसद है लोभ है। वजहें और भी हैं इतनी बताना काफी है।मेरी बात को उन सभी की बात मानिए जो बोले नहीं मगर पीठ पीछे कह रहे हैं । ये उन सबकी आवाज है
ReplyDelete