कोई कुछ भी कहे, ज़रूरी नहीं कि सब उससे सहमत हों। और आज का वाद-आधारित या राजनैतिक दृष्टिकोण पर अवलम्बित सोच तो सुबह अपनी ही कही बात से शाम तक सहमत नहीं होने देता। यदि आप किसी विचारधारा या दलगत सोच की गिरफ्त में हैं, तब तो आप सही-गलत को ठीक से तौल ही नहीं पाएंगे।
लिखे-छपे शब्द "साहित्य" बन कर इंसान और इंसानियत के लिए काम करते हैं, लेकिन इन्हीं में कोई आपको साधू सा दिख सकता है, कोई शैतान सा। फिर लिखने वाले से भी आपका रिश्ता वैसा ही बनेगा।
फिरभी रुकिए मत, नई पीढ़ी को अपने सुझावों और मार्गदर्शन से ये समझाने की कोशिश ज़रूर कीजिये कि आप किसी को क्यों सराह रहे हैं, और किसी पर लानतें भेजने की वजह क्या है।
लिखे-छपे शब्द "साहित्य" बन कर इंसान और इंसानियत के लिए काम करते हैं, लेकिन इन्हीं में कोई आपको साधू सा दिख सकता है, कोई शैतान सा। फिर लिखने वाले से भी आपका रिश्ता वैसा ही बनेगा।
फिरभी रुकिए मत, नई पीढ़ी को अपने सुझावों और मार्गदर्शन से ये समझाने की कोशिश ज़रूर कीजिये कि आप किसी को क्यों सराह रहे हैं, और किसी पर लानतें भेजने की वजह क्या है।